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शनिवार, 8 मई 2010

इरिगेशन में जरूरी मेंशन

इरिगेशन में जरूरी
मेंशन

काम के लिए समय सीमा कम होने से नहीं हो पाती प्रतिस्पर्धा
इरिगेशन विभाग में चहेते बड़े ठेकेदारों को फायदा देने के लिए न्यूनतम समय सीमा का जो फार्मूला इस्तेमाल में लाया जा रहा है उससे विभाग को नुकसान होने का कारण निविदा में प्रतिस्पर्धा का नहीं होना है अर्थात न्यूनतम समय सीमा होने से गिनती के ठेकेदार ही निविदा में शामिल हो पाते हैं। दूसरी ओर कम समय में काम पूरा होने से जुड़ा उद्देश्य भी हासिल नहीं हो पाता क्योंकि निर्धारित समय में काम पूरे होते ही कहां हैं! इरिगेशन में न्यूनतम समय का फार्मूला किसने दिया और इससे जुड़ी हकीकत का
सनसनीखेज खुलासा

मिनीमाता बांगो नहर संभाग चॉपा क्र. 2 में नहरों में लाईनिंग के पुराने काम जिसकी अनुमानित लागत 184.49 लाख है की आमंत्रित निविदा जो 5 अप्रैल 2010 को की गई है में काम के लिए समय सीमा 6 माह है। लाईनिंग के इस बड़े काम में समय कम होने से गिनती के ठेकेदार ही योग्य हुए हैं अगर समय ज्यादा होता तो ठेकेदारों की बड़ी संख्या निविदा में होती जिससे प्रतिस्पर्धा का फायदा सिंचाई विभाग को मिलता इसे अधिकारी बेहतर समझते हैं लेकिन उन्होंने तथ्यों पर गौर करने की बजाए न्यूनतम समय सीमा के फार्मूला पर सहमति जाहिर कर इस व्यवस्था को लागू करने में भूमिका निभाई है तो इसके पीछे गिनती के ऐसे बड़े ठेकेदारों को लाभ देना है जो उनके करीबी हैं या एक तरह से समय सीमा के इस विशेष फार्मूला ने अधिकांश ठेकेदारों को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर दिया है। इस बारे में प्रभावित ठेकेदारों का कहना है उन्हें दिक्कत इस न्यूनतम समय सीमा की व्यवस्था पर नहीं वरन नाराजगी इस बात को लेकर है कि काम जल्दी हो सके इस उद्देश्य से लागू की गई मिनिमम टाईम लिमिट पद्धति कामयाब नहीं होने के बाद भी प्रभावशील है अर्थात जब समय पर काम हो ही नहीं रहे हैं तो इस प्रणाली का क्या मतलब! नहरों में लाईनिंग का पुराना काम पूरा करने के लिए 6 माह का जो निर्धारित समय दिया गया है उसमें काम हो पायेगा इसको लेकर उठ रहे सवालों में दम मालूम होता है क्योंकि 5 अप्रैल 2010 को जो टेंंडर लगा है वह 4 जून को खुलेगा और मुश्किल से पखवाड़े भर बाद बरसात लग जायेगी कहने का मतलब 15 जून से नहरों में पानी छोड़ दिये जाने के बाद नहरों में पूरी बरसात काम नहीं हो सकेगा तो फिर निर्धारित समय सीमा में लाईनिंग का लक्ष्य कैसे संभव होगा? ऐसे में निविदा में मिनिमम टाईम लिमिट का मतलब ही क्या रह जाता है। अगर समय सीमा 6 माह रखनी ही थी तो टेंडर पहले लग जाना चाहिए था पर ऐसा नहीं हो सका। अब सवाल यह उठता है कि निर्धारित अवधि में काम पूरा नहीं कर पाने पर संबंधित ठेकेदार के खिलाफ सचमुच में कोई कार्रवाई होगी भी या कागजों में सवाल जवाब पूरे कर लिये जायेंगे। इस बारे में जानकारों की माने तो ऐसे अनेकों अवसरों पर ठेकेदारों महज कागजी नोटिस थमा कर अधिकारियों ने खुद ही उनके जवाब तैयार कर कार्रवाई के नाम पर कभी कुछ किया ही नहीं है। सिंचाई विभाग में वैसे भी जो हो जाये कम है क्योंकि अधिकांश कामों में अधिकारियों की हिस्सेदारी होती है यह अलग बात है किसी और के नाम काम होते है! इसके लिए यही बानगी पर्याप्त है कि बिल निकलने के साथ ही लाईनिंग टूटने लगती है अर्थात क्वालिटी पर केवल बातें ही होती हैं। जिले में चाहे जहां चले जाईये कुछेक सालों में हुए नहरों के काम हकीकत बया करते दिख जायेंगे। यह सब नीचे से ऊपर तक सभी जानते हैं, शिकायतें भी होती हैं और अधिकारी कार्य स्थल का निरीक्षण भी करते हैं लेकिन परिणाम सामने नहीं आते यहां तक की सरकार के मंत्री भी यहां आकर बड़ी बातें कर कार्यवाही का आश्वासन देकर लौट जाते हैं पर कहां कुछ होता है। जब परिणाम आने ही नहीं है तो भला हाथ पैर मारने का क्या फायदा जब किसानों से जुड़ी इस महत्वपूर्ण नहरों की व्यवस्था के हालात इतने नाजुक हैं तो आगे की बातों का क्या मतलब। जानकारों की माने तो सिंचाई विभाग में खारंग संभाग बहुचर्चित कार्यपालन अधिकारी आलोक अग्रवाल जो इन दिनों चॉपा आने की तैयारी में हैं का दिमाग नये फार्मूले तैयार करने में कुछ ज्यादा ही चलता है। संभव है अपने पराये के भेद की नियत से उसने मिनिमम टाईम लिमिट के सूत्र में खास अदाकारी निभाई है। वैसे चांपा स्थित जल संसाधन डिविजन पर अनेकों अधिकारियों की नजरें हैं क्योंकि पचास से भी अधिक ऐनीकट बनने हैं और भी अनेकों बड़े काम भी होने हैं। यह सब अपनी जगह है लेकिन थोड़े समय सीमा के औचित्य पर विचार होना ही चाहिए नहीं तो क्वालिटी के साथ कामों में प्रतिस्पर्धा नहीं होने से विभाग को अतिरिक्त हानि उठानी पड़े तो आश्चर्य जैसा नहीं होगा।